खदान लीजधारकों के पास 2040 करोड़ बकाया, 62 कोल ब्लॉक में 40 को खनन का लाइसेंस ही नहीं, सालाना 1120 करोड़ का नुकसान

एक तरफ राज्य सरकार उद्योगों के विस्तारीकरण और उसे बढ़ावा देने की बात कर रही है. मोमेंटम झारखंड के साथ तीन बार ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी भी हुई. सौ से अधिक एमओयू भी किये गये. लेकिन खदानों खासकर आयरन ओर और कोल ब्लॉक खुलने में अब भी पेंच फंसा हुआ है. खदाने खुलतीं तो 6000 करोड़ रुपये से अधिक की रॉयल्टी भी आती. वर्तमान में 62 कोल ब्लॉक में से 40 का लाइसेंस अब भी लंबित है.

सरकार के साथ कंपनियों की उदासीनता के कारण 79 आयरन ओर और कोल ब्लॉक में खनन का काम शुरू नहीं हो पाया. ये खदान 2006 से 2011 के बीच आबंटित किये गये थे. खदान नहीं खुलने के कारण लगभग एक लाख करोड़ की परियोजनाएं लंबित भी हैं. 40 कोल ब्लॉक शुरू नहीं होने के कारण सरकार को सालाना 1120 करोड़ का नुकसान भी हो रहा है. Read more

Courtesy: News Wing

Nutrition, hygiene, safety for students

Keonjhar: The district administration on Thursday launched a programme under the midday meal scheme to serve dual purposes – increase attendance in government-run schools and provide additional nutrition content in students’ diet.

The administration, from Thursday onwards, will serve eggs on a daily basis to the schoolchildren under the meal scheme. Read more

Courtesy: The Telegraph

CSE releases detailed assessment of District Mineral Foundation (DMF) scheme

The District Mineral Foundation (DMF) scheme is a people-centric vision of natural resource governance where people’s right to benefit has been put at the forefront. If developed and implemented well, DMFs not only have a huge potential for improving the lives and livelihoods of some of the poorest communities, they could also be a model for inclusive governance,” Sunita Narain, director general of Centre for Science and Environment(CSE),said while releasing CSE’s 2018 assessment report on the scheme here today. Read more

Courtesy: CSE

आदिवासियों को पट्टा देकर जमीन देना भूली सरकार, 18 साल बाद भी खेतिहर किसान नहीं बन पाए आठ हजार आदिवासी

जवा क्षेत्र के डेढ़ हजार गरीबों को बांटे गए थे खेती योग्य जमीनों के पट्टे, जर्जर हो गए भू-अधिकार पत्र, नहीं मिला जमीन पर कब्जा

रीवा. कहने को तो नौ एकड़ जमीन की मालकिन। भूख और प्यास मिटाने के लिए गांव की गलियों में लोगों के सामने गिड़गिड़ा रही हैं। आप यकीन नहीं करेंगे सरकारी सिस्टम का ऐसा जख्म की दो वक्त की रोटी के लिए जिंदगी से जंग लड़ रही हैं। हम बात कर रहे हैं डभौरा क्षेत्र के पुरवा गांव की दो बुजुर्ग महिलाएं छोटकइया और बडक़इया आदिवासी की।
जमीन के इंतजार में दुनिया से चल बसे 9 आदिवासी परिवार जिले के जवा तहसील के घुमन गांव के सुदामापुर गांव में 9 आदिवासियों को खेतिहर किसान बनाने के लिए करीब 81 एकड़ जमीन का पट्टा दिया गया था, लेकिन जमीन पर कब्जा नहीं मिला। पट्टे धारक के परिवार में मात्र दो महिलाएं बची हैं। छोटकइया और बडक़इया के नाम से सरकारी रेकॉर्ड में नौ एकड़ जमीन तो है, लेकिन उस पर गांव के ही लोगों का कब्जा है। Read more

Courtesy: Patrika

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